2 साल से भूखा है भूतों वाला पहाड़! पितृपक्ष मेले से क्या है ‘सत्तू’ उड़ाने का संबंध? पढ़ें ये खबर

गया. कोरोना महामारी की वजह से मजदूरों के पलायन, रोजगार और रोजी-रोटी के संकट से जुड़ी खबरें आपके सामने आई होंगी. लेकिन क्या आपने सुना है कि कोरोना लॉकडाउन की वजह से ‘भूतों का पहाड़’ भी भूखा है. वह भी करीब दो साल से. यह भूतों का पहाड़ दरअसल मोक्षनगरी के रूप में मशहूर बिहार के गया की प्रेतशिला पहाड़ी है, जहां हर साल हजारों श्रद्धालु अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते रहे हैं. लेकिन कोरोना लॉकडाउन की वजह से पिछले साल यह मेला नहीं लगा, इस साल भी इसके आयोजन पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं. यही कारण है कि स्थानीय लोगों का मानना है कि इस पर्वत पर रहने वाली आत्माएं भी दो साल से भूखी पड़ी हैं.

 

गया शहर से महज 10 किलोमीटर दूर प्रेतशिला पर्वत पर हर साल देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं और अपने आत्मजन की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं. हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है और जब तक पुनर्जन्म या मोक्ष नहीं होता, आत्माएं भटकती रहती हैं. इनकी शांति और शुद्धि के लिए ही गया में पिंडदान किया जाता है, ताकि वे जन्म-मरण के फंदे से छूट जाएं. पितृपक्ष मेले के दौरान पूरे गया शहर समेत इस पर्वत पर भी चहल-पहल रहती है, लेकिन पिछले दो साल से यहां सन्नाटा पसरा है.

स्थानीय लोग बताते हैं कि पितृपक्ष मेले के दौरान हजारों की संख्या में आने वाले पिंडदानी यहां अपने परिजनों की तस्वीर छोड़कर जाते हैं. साथ ही पिंडदान के बाद श्रद्धालु अपने साथ लाया सत्तू (चने से बनने वाला बिहार का मशहूर खाद्य पदार्थ) उड़ाते हैं. लोग बताते हैं कि बड़ी मात्रा में सत्तू उड़ाने से प्रेतशिला पर्वत सफेद हो जाता है. इस पर्वत पर ब्रह्मा का मंदिर भी है. इस मंदिर के मुख्य पंडा श्री पांडे ने बताया कि प्रेतशिला पर्वत का बखान वायु पुराण में भी किया गया है. उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण यहां दो साल से पिंडदान बंद है. पितृपक्ष मेला ही यहां के पंडों या दुकानदारों की आय का मुख्य स्रोत है. लेकिन पिछले दो साल से मेले का आयोजन न होने से श्रद्धालु नहीं आ रहे हैं, जिसकी वजह से आत्माएं भी अतृप्त भटक रही हैं.

 

स्थानीय नागरिक सत्येंद्र पांडे धामी ने बताया कि इस पहाड़ की चोटी तक चढ़ना काफी कठिन है, इस पर 500 सीढ़ियां है, लेकिन अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए हर श्रद्धालु इस कठिन चढ़ाई को पूरा करता है. 1000 फीट से ज्यादा ऊंचे प्रेतशिला पर्वत पर पिंडदान से पहले श्रद्धालुओं को नीचे बने ब्रह्म तालाब के पास कर्मकांड की प्रक्रिया पूरी करनी होती है. उसके बाद वे पिंड लेकर पर्वत पर बने मंदिर तक पहुंचते हैं, जहां पर पिंडदान-कर्म पूरा होता है.

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